(कोरोना मरीजोका इलाज करते हुये शहीद हुये डॉक्टरकी कहानी)
रोती-सिसकती बिवी को
घर अकेला छोड आया हूँ ।
कोरोना योद्धा बनकर अपना
फर्ज निभाने आया हूँ ।
कहती रही मेरी बुढी माँ
मत जा मेरे बेटे तू,
सिरहाने बैठकर प्यार से
उसे समजाकर आया हूँ ।
वो नन्हीसी गुड़ियाँ मेरी
आकर झटसे लिपट गई,
खिलोने, मिठाई, चुडियो का,
उसे वादा करके आया हूँ ।
कोरोंनासे पीडित मरिजो का
दर्द मैं कैसे बयाँ करू,
हौसला खोये मरिजो को
जीवनदान देणे आया हूँ ।
महामारिके इस संकटमे
है कसोटी मेरे ज्ञानकी,
हमे भगवान समझने वालोका
भरोसा जितने आया हूँ ।
लगा रहा रात-दिन सेवामें और स्वस्थ किया कितनों को मैंने,
पर ना जाने कब और कैसे
कोरोंनासे हारकर आया हूँ ।
लडते लडते कोरोनासे
मैने अंतीम साँस भलेही ली,
बनकर कोरोना योद्धा फिर भी
देशसेवा करके आया हूँ ।
– प्रा. डॉ. संतोष संभाजी डाखरे
– राजे विश्वेश्वरराव कला वाणिज्य महा.भामरागड
– मोबा. 8275291596
(काव्यलेखन स्पर्धेत प्रथम पुरस्कारप्राप्त कविता)